जालंधर: जिला प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद भी किसान बेखौफ होकर खेतों में धान की पराली जलाने का काम कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ जालंधर के आस-पास के गांवो में देखने को मिल रहा है। जहा किसानों द्वारा पराली को आग लगाई जा रही है। खेतों में पराली जलाने से जहां वायू प्रदुषण बढ़ रहा है, वहीं भूमि की उपजाऊ क्षमता भी कम हो रही है। हालांकि प्रशासन ने पराली जलाने वालों पर निगरानी रखने के लिए कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की है। इसके बावजूद भी पराली जलाने पर क्षेत्र में किसी भी किसान पर कार्रवाई नहीं हुई है। इससे वे मान नहीं रहे हैं।
प्रशासन ने पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए खेतों में धान की पराली जलाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा रखा है। वहीं पराली जलाने पर प्रशासन द्वारा 3 से 15 हजार रूपए तक जुर्माना वसूला जाता है। इसके बावजूद भी किसान पराली जलाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। धान की कटाई के बाद सरसों और गेहूं की बुआई आरंभ हो जाती है।
किसान इन फसलों की अगेती बुआई करने के लिए धान की कटाई का कार्य पूर्ण होने के बाद पराली और फानों में आग लगा देते हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खेत में पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। वहीं मिट्टी में मौजूद किसान मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हें। इसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है। किसान मित्र कीट नष्ट होने से फसलों में बिमारी का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है